शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

NO BODY IS PERFECT.

 I am happy that i know it.......

" I am not good at many things but im good in few things and I enjoy these few things . That is enough to be happy."

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

सोमवार, 7 सितंबर 2020

script -podcast -2 mantras and their benefits.

नमस्कार , मैं ज्योति कक्कड़ आज एक बार फिर पॉडकास्ट के मंच पर आपके सामने उपस्थित हूँ।

 कैसे हैं आप? कोरोना का कहर रुकने का नाम नहीं ले रहा।  इस समय हम सबको बहुत संयमित रहने की आवश्यकता ( need to remain patient )है। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ( physical and mental health ) के प्रति बहुत जागरूक (aware ) रहना है और अपने आस पास सबको जागरूक करना है. स्वयं को व्यस्त (busy) रखना है। रोज़मर्रा के काम तो हैं हीं , फुर्सत ( free time )में भी हर क्षण  को ख़ुशी से काटना है,अपनी इच्छा और रूचि के अनुसार ( according to your interests and hobbies) . अवसाद को निकट नहीं आने देना है। व्यस्त रहना है कुछ उपयोगी  ( productive ) करने और सीखने में। 

 " सीखने की कोई आयु नहीं होती " के दूसरे एपिसोड में मैं  मन्त्रों के विषय में बात करूंगी। 

मन्त्र क्या है, उनके लाभ क्या  हैं, उनको कब पढ़ना चाहिए. पुस्तकों ,लेखों और इंटरनेट से मैंने  जो सीखा और मेरी  इस बारे में क्या धारणा  है उसको मैं आपके साथ साझा करना  चाहती हूँ।

 यहाँ मैं इसको धार्मिकता से जोड़ कर बात नहीं कर रही हूँ । मेरे लिए मंत्र वो है जिन के द्वारा  कहीं भी किसी भी कार्य में संलग्न रहते हुए ईश्वर के सानिध्य में रहा जा सकता है।  इनके द्वारा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जा सकती है।  रसोई में कार्य करते हुए , बस में सफर करते हुए, और डॉ  के क्लिनिक के बाहर अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में समय काटते हुए, उस  मंत्र को गुनगुनाते हुए। 

 मैंने कहीं पढ़ा कि जो अंतर्मन में समाहित हो वो मन्त्र है।  अर्थात मंत्रोच्चारण (chanting  of  mantra )  के द्वारा शरीर ,मन और आत्मा ( body, mind and soul ) को एकसार कर के ईश्वर के सानिध्य में ( near )रहने का, हर पल उसको अपना सहायक ( helper )अनुभव करने का ,उस की स्तुति ( praise ) करने  का , उससे विनती करने का, उस को हर क्षण धन्यवाद करने  का माध्यम ( medium )है।  ये अर्थपूर्ण शब्द ( meaningful words )आप अपनी धार्मिक पुस्तक ( religious book )से ले सकते हैं या ये शब्द आप के ह्रदय( heart ) से निकले हो सकते हैं। 

 इसको मैं विस्तार ( detail ) से अपने तरीके से बताने का  प्रयास करूंगी.  

प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि हम पर, चाहे हम श्रोता ( listener ) हों या वक्ता ( speaker )अलग प्रभाव डालती है। और हमारा व्यवहार,( behavior ) प्रतिक्रिया ( response ) भी उन्ही के अनुरूप ( according to them )होती  है. 

अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि ( sound )से मस्तिष्क ( mind ) में काम,क्रोध, मोह ,भय,लोभ आदि की भावना उत्त्पन होती है जिसके कारण  दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। रक्त ( blood )में विकार (bad chemicals )
उत्त्पन्न ( produce) होंने लगते हैं , मन अशांत हो जाता है। आपका व्यवहार नकारात्मक ( negative behavior )हो जाता है।  

इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि ( sound of pleasant words ) मस्तिष्क, ह्रदय और रक्त ( brain, heart and blood ) पर अमृत की तरह रसायन ( beneficial chemicals )की वर्षा करती है। इसके परिणाम स्वरुप  ( as a result )हमारा आचरण और व्यवहार सबके साथ मधुर होता है। 
 
मेरे विचार से मन्त्र ऐसा शब्द या ऐसे शब्दों का समूह है जिनके उच्चारण से हम ईश्वर की निकटता का अनुभव करते हैं , उसको अपने सन्मुख  जान कर उसकी स्तुति करते हैं और उसको धन्यवाद देते हैं। साथ ही  मन्त्र एक ऐसी ध्वनि है जिससे उत्त्पन होने वाली तरंगे ( vibrations ) आपकी इच्छा से जुड़ कर उसको पूर्ण करती है. अर्थात आपकी प्रार्थना  ईश्वर तक पहुँचती है. 

नियमित रूप से  मन्त्रों के उच्चारण से शरीरिक और मानसिक बल बढ़ता है, रोग निकट नहीं आते।  मस्तिष्क शांत, एकाग्र ( focused ), संतुलित  ( balanced )और पवित्र ( pure )रहता है।   शरीर, मन और बुद्धि की अशुद्धियाँ ( impurities of body, mind and brain ) दूर होती हैं।( थॉट्स  ईश्वर से निकटता अनुभव होती है। 
मन्त्र को कई कई बार दोहराने से सकारात्मक ऊर्जा ( positive energy )का संचार होता है।  हम कठिन परिस्थिति में  शांत चित्त रहते हैं , निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और स्वयं में विश्वास ( self believe ) उत्त्पन्न होता है।  
 
हमारे शरीर और मन को ऊर्जा अर्थात कार्य करने की शक्ति और स्फूर्ति  ( power and speed )हवा से, सूरज से भोजन और पानी से मिलती है।  उसी ऊर्जा  से हमारा शरीर और मन सुचारूरूप ( perfectly )से कार्य करता है। 
अधिक  शारीरिक श्रम से  शरीरिक ऊर्जा का क्षय ( loss ) होता है और उसी भोजन, हवा पानी से हम उस ऊर्जा को पुनः प्राप्त करते हैं। ये तो हुई मंत्रोच्चारण से शरीर को ऊर्जा मिलने की बात। 
 
अब बात करते हैं मन की।  मन भूत भविष्य ( past and future ) में घूमता रहता है , विचार ( thoughts )आते जाते रहते हैं। उन  विचारों की चाल से  मानसिक ऊर्जा ( mental energy )का क्षय होता है. मन जितना तेज़ भागेगा या जितने ज्यादा  नकारात्मक विचार ( negative thoughts )होंगे उतनी ही ज्यादा मानसिक ऊर्जा का नाश होगा । पुनः ऊर्जा प्राप्ति  के लिए हमको मन को बांधने की आवश्यकता होती है और मन को बांधने का उपाय है मंत्रोच्चारण।  
  ईश्वर को सन्मुख जान कर मन्त्र पढ़ने से हम आत्मकेंद्रित रहेंगे ( self centered ), शांत रहेंगे। साँसों  पर नियंत्रण ( control on breath )होगा।साँसों में एक शांत लय ( rhythm ) स्थापित होगी।  आनंद और शांति ( happiness and peace )का अनुभव होगा. शरीर और मन फिर से ऊर्जा से भर जायेगा ,विश्वास ( believe in self) उत्त्पन्न होगा , दृढ निश्चय ( strong decision)बनेंगे परिणाम स्वरुप आप  रोज़मर्रा के कार्य शांत मन से , दोगुने उत्साह से और कुशलता से करेंगे।  किसी नकारात्मक परिस्थिति में भी संयमित व्यवहार ( balanced behavior in negative situation) करेंगे . मानसिक तनाव( mental stress ) कम होगा. मन प्रफुल्लित ( happy )रहेगा. और नियमित रूप से ( regularly )मंत्रोच्चारण करने से आनंद और शांति आपका स्वभाव बन जायेगा। 

ॐ मन्त्र , गायत्री मंत्र , महामृत्यंजय मंत्र और ऐसे ही कई  मंत्र हैं जिनका हम सर्वाधिक पाठ  करते हैं।  
 आप चाहें तो मंत्रोच्चारण के लिए अपनी अपनी धार्मिक पुस्तक से स्वयं ही कुछ अर्थपूर्ण शब्दों  ( meaningful  words ), पंक्तियों का चयन कर लें। या  ईश्वर के प्रति आपका क्या भाव है उससे सम्बंधित आप शब्द चयन करें. आप ह्रदय की गहराईयों से इसका उच्चारण करेंगे. तो उद्देश्य की पूर्ती  ( fulfillment of your aim )हो जाएगी. उद्देश्य ( aim ) है ईश्वर से निकटता का अनुभव ( experience )
 
मुझको याद है मेरे स्वर्गीय  पिताजी एकांत में बैठ कर तीन शब्दों के लयबद्ध , भावपूर्ण ( with rhythem and emotions ) उच्चारण के द्वारा  ईश्वर  को धन्यवाद देते थे ----- तू ही तू  .  यही उनका मन्त्र था। और ये किसी पुस्तक के नहीं वरन उनके अपने ह्रदय से निकले शब्द थे --अब  जब  मैं इसको बोलती हूँ तो मुझको इसका व्यापक अर्थ अमझ आता है। 
.तू ही तू अर्थात तू सर्वत्र है. तू ही सृष्टि  का रचयिता है और तू ही सब करने और कराने वाला  है. 
 तू सदा सहायक है।  इन तीन शब्दों में सभी भाव समाये हैं। उच्चारण करते समय आपके अपने भाव स्वतः ( without  effort )ही जुड़ते जाएंगे।  इस तरह आप  किन्ही भी शब्दों द्वारा ईश्वर से याचना ( plead)और  उसको धन्यवाद कर सकते हैं।  

ये मेरे अपने अनुभवों  पर आधारित मेरे अपने विचार हैं. आशा है आप इससे सहमत होंगे.  

  अब मैं सर्वत्र  everywhere सर्वाधिक प्रचलित ( most ) ॐ  मंत्र की बात करती हूँ. इसका अर्थ शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।  यह मूल पवित्र ध्वनि है और इसकी उत्त्पत्ति ब्रह्माण्ड  universe)  से हुई है और अंतहीन ( without end point ) ब्रह्माण्ड में सर्वत्र  व्याप्त ( everywhere present )है। ब्रह्माण्ड  में सभी ग्रहों ( planets )में गति ( movement )है। वे अपनी धुरी (axis ) पर घूम रहे हैं या परिक्र्मा कर रहे हैं।  उनकी गति से जो ध्वनि उत्त्पन्न होती है वो हर समय सृष्टि में विद्यमान है और  गूंजती रहती  है। ये ध्वनि नासा ने भी रिकॉर्ड की है और इसके वैज्ञानिक साक्ष्य ( scientifically proved )भी हैं।  यही ध्वनि हमारे अंदर भी है। पर  पूर्ण  ध्यान की अवस्था में जब आपको कोई भी बाहरी ध्वनि सुनाई पड़नी बंद हो जाए तभी आप इसको सुन सकते हैं।  इसके लिए मन को बाहरी जगत से हटा कर परमेश्वर के ध्यान में लीन करना होगा  । पूर्ण  ध्यान की अवस्था में ये ॐ का उच्चारण आपके चारों और एक सकारात्मकता का घेरा ( aura of positivism ) बना देगा। 

 ॐ शब्द ३ अक्षरों से बना है. अ , ऊ और म। ये ३ ही अक्षर हैं जिनके उच्चारण में जीभ का उपयोग नहीं होता है। यदि आप ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते हैं  तो सिर्फआ का या केवल ओ  का या कभी म  अक्षर का उच्चारण करें .इनसे उत्त्पन ध्वनि नाभि से आज्ञा चक्र तक ऊर्जा उत्त्पन्न करती  है। ॐ के उच्चारण से गले में कम्पन्न ( vibration ) होता है और इससे thyroid gland   जाग्रत होता  है. ॐ का उच्चारण स्नायुतंत्र ( nerves system )में ऊर्जा भरता है और उससे सम्बंधित रोगों ( related diseases )से मुक्ति मिलती है।  

ॐ का उच्चारण जोर से करें या धीरे धीरे , ५ बार , १०८ बार या इससे भी अधिक बार। तन्मयता से उच्चारण करने पर इससे निकलने वाली ध्वनि  ( साउंड ) शरीर के हार्मोन स्त्राव ( release ) करने वाली ग्रंथियों से टकरा कर उनके स्त्राव को नियंत्रित ( control ) करके बिमारियों को दूर भगाती  है। स्वभाव् शांत स्थिर होता है । मानसिक तनाव ( stress )से मुक्ति मिलती है.  इम्युनिटी,और जागरूकता में वृद्धि होती  है । दृढ़निश्चई ( firm  decision )होते  हैं । 
मानसिक और बाहरी वातावरण ( atmosphere) की नकारात्मकता ( negativity ) सकारात्मकता ( positivism )में परिवर्तित हुई प्रतीत होगी।

 ॐ मंत्र के उच्चारण के इतने लाभ हैं तो क्यों न नियमित रूप से ( regularly ) इसे करने की आदत बनाई जाए। आज के एपिसोड को इस आशा के साथ समाप्त  करती हूँ कि  आप इसको स्वयं करेंगे और दूसरों को इसके लाभ बताते हुए उनको ॐ उच्चारण करने को प्रेरित करेंगे, धन्यवाद। 
                         
                  ज्योति कक्कड़ 
wapp - 9162183986  and  9308858213 



बुधवार, 26 अगस्त 2020

SCRIPT FOR 1ST PODCAST- LEARN TILL END

नमस्कार ,

मै ज्योति कक्कड़ । आयु ६४ साल.

अपने प्रथम प्रयास के साथ HEADFONE के मंच पर उपस्थित हूँ।  

 मैंने अपने इस नए प्रयास को नाम दिया है " सीखने की कोई आयु नहीं होती  । 

२०२० आया तो हमेशा की तरह सबने एक दूसरे  को नववर्ष की शुभकामनायें दीं। 

२०२० के लिए सबके अपने अपने PLAN रहे होंगे, उम्मीदें रही होंगी। 

किसी को अपने अधूरे काम पूरे करने थे, किसी को नई  दिशा में अपना कदम बढ़ाना था। 

 पर ऊपर वाला  हमारे लिए कुछ और ही प्लान कर रहा था. और फिर उसने हमको ऐसी परिस्थिति में डाला जहाँ सबके दौड़ते भागते जीवन में एक ठहराव सा आ गया। हम सबके जीवन में एक नई परिस्थिति उत्त्पन्न हो गई। वो समय जो हाथ न आता था, हमको रोकने के लिए खुद हमारे साथ रुक गया।  

कोरोना के रूप में ईश्वर ने  हमारे सामने ये नई परिस्थिति उत्त्पन की। सभी के लिए संघर्ष का समय शुरू हो  गया. रोजी रोटी के लिए संघर्ष, जीने के लिए संघर्ष। कई घर से बेघर हुए. और उनके पहले से ही संघर्षरत जीवन में  और कठिन संघर्ष शुरू हुआ। वो बहुत कठिन समय था।  सब तरफ आपाधापी, संशय था।  और ये मनुष्य ही है जो ईश्वर प्रदत्त हर  परीक्षा में  सफल होने के लिए प्रयासरत रहता है.

LOCKDOWN  ने सबका जीने का ढंग बदल दिया। मुहावरा बदल गया जिसमें १९-२० के अंतर का मतलब था नाम मात्र का अंतर पर १९ से २० में प्रवेश करते ही इस धरती पर ऐसा बदलाव आया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

 मनुष्य के लिए संघर्ष का समय आया पर मनुष्य का स्थिर होना पर्यावरण में सुखद बदलाव लाया ।  मानो ईश्वर प्रकृति  का सुन्दर, प्रदुषण रहित रूप दिखा कर हम इंसान को  सुधर जाने का पाठ पढ़ा रहा हो। 

प्राथमिकताएं, ज़रूरतें बदल गई हैं। जीने का ढंग बदल गया है।लोग नयी परिस्थिति के अनुसार ढल रहे हैं। कुछ हैं जो इस बदलाव को सहन न कर पाए, मानसिक संतुलन खोने लगे, जब की दूसरी ओर कुछ लोग इस रुके हुए समय का भरपूर लाभ उठाने में लगे हैं।   

ये हमारे धैर्य की, विपत्ति से निपटने में हमारी समझदारी की परीक्षा का समय है। समय है कर्म  का , समय है रचनात्मकता का, समय है अपनी प्रतिभा को निखारने का. कुछ नया करने और सीखने का। और इस सीखने में स्मार्टफोन और इंटरनेट मिल कर हमारे सहायक बने हैं। 

मैंने भी इस समय का सदुपयोग करने का प्रयास किया है। दराज़ों को खंगाला तो सालों पुरानी अखबारों की cuttings मिलीं। कुछ रसोई से सम्बंधित  लेख , कुछ सौंदर्य और सेहत से सम्बंधित लेख, दादी माँ के नुस्खे, कुछ पसंदीदा फ़िल्मी गाने, कुछ भजन ,कुछ आध्यात्म के लेख,और भी न जाने क्या क्या,जो wapp और facebook  की दुनिआ में प्रवेश के बाद दराज़ के अंदर सोये पड़े थे। 

समय और आयु  बढ़ने के साथ मनुष्य की रुचियाँ बदल जाती हैं और कई बार जीवन की आपाधापी में दबी रह जाती हैं और कहीं पीछे छूट  जाती हैं। 

पाया कि  पकवान बनाने में अब कोई ख़ास रूचि रही नहीं . बचा संगीत ,अध्यात्म और सेहत जिनकी और इस आयु में झुकाव हो ही जाता है। अब इन्ही के साथ कुछ  नया करने का प्रयास किया है। प्रयास है तो त्रुटि भी होगी। उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। इसमें मेरी बुद्धि का प्रयोग उतना ही है कि जो पढ़ा ,नेट पर  देखा, सुना उसको एक नए मंच पर लाने का प्रयास किया। 

सीखने की कोई आयु नहीं होती. इधर पॉडकास्ट का बहुत नाम सुना. गूगल से इसकी जानकारी ली।  गूगल ऐसी  पाठशाला है जहाँ आप किसी विषय पर प्रश्न पूछो तो वो उस विषय  पर ज्ञान देने के साथ आगे के लिए रास्ते दिखाता है।  उसी से कई मंच पता लगे जहाँ आप पॉडकास्ट बना और प्रस्तुत कर सकते हैं।  

अब अगला कदम था कि  पॉडकास्ट का विषय क्या हो ? तो विचार आया कि पूजा के समय बहुत सुकून देने वाले मन्त्र हम पढ़ते  हैं या जाप करते हैं. कई बार हमको उनका अर्थ नहीं पता होता.  विचार आया की जो मंत्र बिना उनका अर्थ जाने , पढ़ने पर  इतना सुकून देते हैं यदि उनका अर्थ पता हो तो शायद उनके जाप में और भाव जुड़ेगा. इसी विचार के साथ अगले एपिसोड की शुरुआत करूंगी  कुछ मंत्र और उनके अर्थ के साथ । 

एक बार फिर दोहराना चाहूंगी कि जो प्रस्तुत कर रही हूँ उसका मुझको अल्प ज्ञान है। वो कहीं से पढ़ा या सुना है. इसलिए किसी भी त्रुटि के लिए  क्षमा चाहती हूँऔर किसी भी सुधार  के लिए आपसे सुझाव की अपेक्षा रखती हूँ क्योंकि सीखने की कोई आयु  नहीं होती। 🙏



   

                                 

रविवार, 14 जून 2020

EVEN THIS SHALL PASS




"Even this shall pass"

A mantra that cheers



Is there anyone among us who does not wish to be happy? That’s unlikely. However, happiness and sorrow do not drop from the skies. Your thoughts are the cause of happiness and sorrow. Even if you are in a happy state, and a sad thought enters your mind, you suddenly feel unhappy, isn’t it? If you want to be ever cheerful, remember the following mantra: “Even this shall pass.” Let this be inscribed indelibly in your heart. With the practice of this mantra, you can remain alert in the event of both pleasure and pain and stop yourself from getting engrossed in them. Then, you can establish yourself in the supreme bliss of equanimity. Pairs of opposites such as pleasure and pain, honour and insult, joy and sorrow affect the body. They will come and go in a greater or lesser degree so long as the body exists. Do not be overwhelmed by them. You are the absolute Self, imperishable Atman while pleasures and pains are fleeting. How can they ever affect you? They have no existence of their own. In fact, they appear on the ground of your existence. You are distinct from them. Hence witness them, withstand them, and let them pass away. Be ever blissful and peaceful. There is no object that brings pleasure or pain. They are creations of your mind, your thoughts and feelings. With the help of these thoughts be absorbed in your own eternal Being, the Truth absolute and be always peaceful. You are the Supreme Bliss, Brahmn personified. It is your Self that dwells in all. The happiness that appears in the world is in fact just a glimpse of Self-bliss. It is your inner bliss but because of your ignorance, you think it is obtained from external objects of sense pleasures. Just as the sun’s reflection in the water is not the real sun but is merely an illusory appearance thereof, so also is the pleasure experienced through sense-enjoyments – it is not real bliss. It is an illusion, not real. Supreme Brahmn alone is existence, consciousness and bliss absolute. It is the One absolute reality which appears as existence, consciousness and bliss in different beings. But one who has a pure heart beholds the Lord as the One, non-dual Reality. A person prayed to Swami Ramatirtha, “Swamiji! Bless me that I become king of the world.” Swami Ramatirtha asked him, “What will you do if you become so?” The man replied, “I will be pleased and happy.” Swami Ramatirtha said, “Suppose you become a king, you will still come across many miseries in your life since the things through which you seek pleasure are themselves transient. They never remain with anybody forever, then how will they stay with you? Better than that, if you renounce the desire for seeking pleasure from transient things you will attain supreme bliss right now. That would be greater than the happiness you can derive from your dream kingdom.” The mind becomes peaceful when it overcomes desires; then you can experience imperishable bliss. True peace lies only in the renunciation of desires. A content person alone can remain happy. Even a millionaire is bankrupt without contentment. A content person is the wealthiest of all. He alone attains peace. Appreciate the present. Overcome greed and be content with what you have. Give thanks to God. Then you could help others achieve bliss.