शुक्रवार, 9 जून 2023

   उम्र 

मैं ज्योति कक्कड़ ,सीखने की कोई उम्र नहीं होती के अपने पाँचवे पॉडकास्ट के साथ एक बार फिर पोडकास्टर्स के माध्यम से अपने मन की बात करने आई हूँ. आप हँसे क्यों?

हर किसी के पास मन होता है ,जिसमें बहुत सी बातें होती हैं और अपने  मन की बात साझा  करके आनंद भी मिलता है और सुझाव भी। 

पर  हर कोई अच्छा वक्ता नहीं होता। अर्थात हर किसी में वो हुनर नहीं होता कि अपने मन की बात बोल कर कह सके। मुझ में भी नहीं है इसलिए मैं भी अपने मन की बात अपने ब्लॉग में  लिखती हूँ  और कभी कभी अपने लिखे को यहाँ  आपसे पॉडकास्ट के माध्यम से साझा करने आ जाती हूँ.  . तो  हुआ यूँ  कि 

मैं पांच भाई बहन  की सबसे छोटी बहन  जब ब्याह कर एक संयुक्त परिवार की बहु के रूप में ससुराल पहुंची तो जिम्मेरदारिओं के मकड़जाल में जो घिरी तो घिरती ही चली गई। 

ऐसा नहीं की खुद की एहमियत भूल गई पर हाँ, खुद की एहमियत को पीछे रखा. ये आम भारतीय गृहिणी  की कहानी है. नया इसमें कुछ नहीं है. 

पर कुलबुलाहट और  बेचैनी तो थी कि ये गृहस्थी तो ऐसा मकड़जाल है कि  जिसमें फंसती ही जा रही हूँ। चाह रही हूँ थोड़ा सर  बाहर  निकालना पर  घेरा बढ़ता जा रहा है। सबके लिए समय निकाल रही हूँ पैर अपने लिए क्यों नहीं? सबको खुश कर रही हूँ पर क्या मैं खुश हूँ ? 

और फिर ठान ही  लिया कि ऐसे नहीं चलेगा। अपने लिए कुछ तो करना है। और फिर एक छोटा कदम बढ़ाया। औरअपना सर उस मकड़ जाल से निकाला। आदत सी हो गई थी उस मकड़जाल में रहने की तो अपने पैर उसी में फँसा कर रखे। और पंख थोड़ा फैलाए।   

 कुछ अपनी ख़ुशी के लिए किया जाए ये सोच कर १० साल पहले घर से ही एक छोटा व्यापार शुरू किया. जो आज मुझको ख़ुशी के साथ आत्मविश्वास और संतुष्टि भी दे रहा है. 

तो अब विषय पर आते हैं और बात करते हैं उम्र की घर से ही काम शुरू किया ५७ की उम्र में।  और गलतियां करते, गलतियों से खुद ही सीखते सीखते छोटे से काम को जो टाइम पास करने के लिए शुरू किया था उसको १० साल आगे ले ही आई। तो जिस उम्र में लोग नौकरी से रिटायर होते हैं ,उस उम्र में  मैंने काम शुरू किया। 

तो अब जब ३ कम ७० की हो गई तो अक्सर एक वाक्य सुनती हूँ कि बहुत अच्छा लगता है यह देख कर कि आप इस उम्र में काम कर रही हैं. अकेले  संभाल रही हैं?  मन  ही  मन इसको तारीफ समझ कर  खुश होती  हूँ पर पूछने को मन करता है कि काम करने की क्या उम्र होती है. और किस उम्र में काम  बंद कर देना चाहिए, 

मेरे हिसाब से तो जब तक चाह है,और जब तक आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं , जब तक आप काम को एन्जॉय रही है, और जब तक सभी परिस्थितियां आपके पक्ष में है काम करना चाहिए,

सभी को पता है कि कुशलता से घर गृहस्थी चलाने में  किसी नौकरी और रोज़गार से कम समय और मेहनत नहीं लगती और उसको  गृहणियां ८०=८५  वर्ष की उम्र में भी कुशलता से चलाती हैँ।   इस बात को समझना बहुत आवश्यक है कि गृहस्थी  चलाई है तो हममे कुछ भी करने की काबिलियत है,.वर्ना गृहणियां बहुत हीन भावना से बोलती हैं कि नही मैं कुछ नहीं करती ,घर गृहस्थी ही संभालती हूँ. आप समझिये की आप बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभा रही हैं। आप स्वयं घर पैर रह कर, हर एक की ज़रूरतों  का  ध्यान रख कर ,घर की सभी  जिम्मेदारी उठा कर घर के बाकी  सदस्यों को घर से बाहर जा कर उनका कर्रिएर बनाने का मौका दे रही हैं. 

  गृहस्थी चलाते चलाते व्यापार करने की ट्रेनिंग हम को अनजाने में ही  मिल जाती  है . 

 कुकिंग स्किल्स के साथ ही  टाइम मॅनॅग्मेंट, फाइनेंस मॅनॅग्मेंट, बजट मॅनॅग्मेंट , पब्लिक डीलिंग स्टाफ मॅनॅग्मेंट और भी कोई स्किल व्यापार के लिए चाहिए  तो वो भी गृहस्थी चला कर हम गृहणियां सीख ही जाती हैं. इसी से जब गृहस्थी चला ली तो  व्यापार भी चला ही लिया। व्यापार करके आपने पैसे कमाए तो ये  उतनी बड़ी उपलब्धि नहीं है जितना रसोई से निकल नए फील्ड में काम करके आपने कुछ नया  सीखा,समय का सदुपयोग कियाअपने लिए समय निकाला इससे आपका  आत्मविश्वास बढ़ा और आप अपने लिए भी जी रही हैं. फिर उम्र को आप पीछे छोड़ देती हैं. कोई याद दिला दे तो उम्र की गिनती  याद आ जाती  है। 

वैसे भी  जिसने पहले घर गृहस्थी संभाली और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाया. उसको ६० की उम्र के बाद अपने को वैसे ही पहले की तरह  व्यस्त रखने  से  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ ठीक रहता  है। व्यस्त  रहने का रास्ता अपनी अपनी  पारिवारिक परिस्थिति पर निर्भर करता है  या तो अपने शौक पूरे करने चाहिए या कोई काम ज़रूर करना चाहिए। जब कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, जब बच्चे जीवन में  सेटल हो गये हैं तो उस खालीपन को भरने के लिए व्यस्त रहने का इससे अच्छा रास्ता नहीं है. काम ऐसा जो आपको ख़ुशी दे। आपके शौक पूरे करे, और जिससे आप कुछ नया सीखें  मकसद है स्वयं को खुश रखना और जीवन को अपने अपने  लिए जीना। आर्थिक आत्मनिर्भरता बाद  में आती है पहले शारीरिकऔर  मानसिक दशा बदलती  है.  .  

 lockdown में समय की मांग को देखते हुए गृहणियों ने अपनी पसंद के कार्य को रोज़गार बनाया  टिफ़िन सर्विस  हो या  अचार पापड़  बनाना, पढ़ाना हो या खुद  कुछ सीखना.  

अब जब बचे हुए समय में मैंने  पसंद का काम किया तो उससे ख़ुशी के साथ रोज़ कुछ नया सीखने को मिला। रोज़ नए लोगों से मिलना होता हैं। उन की सुन कर अपनी कह कर ज्ञान का आदान प्रदान हो जाता है. । 

 समय के साथ दुनिया  बदल रही है. और तेज़ रफ़्तार से बदल  रही  है और प्रतिदिन एक नई  चुनौती सामने  आती  है और  हम गृहनियों  को चुनौती का सामना करना अच्छी तरह से आता है.  

  जब एक औरत ७० की उम्र में सड़क किनारे सब्ज़ी बेच रही है या दूरों के घर बर्तन,सफाई कर रही  तो हम घर बैठ कर हर सहूलियत के बीच जो कर रहे हैं वो कुछ भी नहीं.  

अगर कुछ  करने  इच्छा है तो  उम्र की न सोचें और अपनी रूचि, क्षमता ,अपनी  पारिवारिक परिस्थिती के अनुसार जो कर सकें ,करें।  नहीं इच्छा  है तो भी कोई बात नहीं। मकसद है ख़ुशी से जीना।  ता उम्र  ज़िम्मेदारियाँ  रूप बदल कर आती रहेंगी। पहले आप माँ थी ,अब दादी हैं। उम्र के साथ बढ़ती ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करना भी बहुत बड़ा काम है.  गृहस्थी में उम्र बढ़ने के साथ हमारी  भागीदारी बदल जातो है। और समय के साथ खुद को बदल कर,बदलती हुई जिम्मेदारिओं  को सहर्ष अपना कर ही हम गृहणियां आगे बढ़ती जाती  हैं।  

काम  करने और   सीखने के  लिए कोई उम्र  नहीं होती. .और अभी उम्र है अपने हिसाब से  जीवन जीने की . काम करने की।  समय अगर चलते फिरते, ख़ुशी के साथ बीते तो इससे अच्छा कुछ नहीं. तो उम्र की  गिनती अब नहीं करनी है। हर दिन को जीना है. समय के साथ आगे बढ़ना है। 

मिलते हैं अगले  एपिसोड में जल्दी ही कुछ और मन की बात करने को।  खुश रहे स्वस्थ रहे। 


 


 

सोमवार, 8 मई 2023

रिश्ते - कच्चे धागे या पक्के. script for podcast 4


रिश्ते 
नमस्कार। आज बहुत लम्बे अंतराल के बाद मैं अपने चौथे पॉडकास्ट के साथ आपके सन्मुख उपस्थित  हूँ. आज धागे सुलझाते हुए एक कहावत याद आई कि रिश्ते कच्चे धागों की तरह होते हैं,और फिर रिश्तों के बारे में बात करने का मन हो गया. 
  जैसा की पहले एक एपिसोड में मैंने बोला कि जीवन एक यात्रा है जो जन्म से शुरू हो कर मृत्यु पर समाप्त होती है. 
इस पूरी जीवन यात्रा में हम कई रिश्तों को निभाते है. ,कुछ रिश्ते जन्मजात होते हैं  कुछ करीबी, कुछ  दूर के. पर क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन की परिस्थितियां अलग हैं तो हर एक का स्वभाव भी अलग होता है, अपने शांत या उग्र स्वभाव के अनुसार हर व्यक्ति रिश्तों को अपने ढंग से निभाता है. कुछ रिश्ते प्यार से भरे होते हैं और कुछ मनमुटाव वाले. पर मनमुटाव को दूर करके रिश्ते निभाना भी एक कला है. हर एक के साथ तालमेल बैठा कर , कुछ  नज़रअंदाज़ करके, कुछ सामंजस्य बैठा कर यदि सभी के साथ हम अच्छे रिश्ते रखें तो जीवन तनावरहित और उल्लासपूर्ण हँसते खेलते बीतता है. और कौन जीवन को तनावपूर्ण जीना चाहता है?  

  रिश्ते  एक कच्चे धागे की तरह होते हैं। ऐसी कोई भी कहावत हमारे लिए  सिर्फ एक वाक्य होती  हैं।
  हर बात हम  किताबों से नहीं सीखते। हर बात हम दूसरों की सुन कर भी नहीं सीखते. 
  सीखते हैं हम अपने रोज़मर्रा के अनुभवोँ  से। 
 और तब हम इसका मतलब भी समझते हैं. जब हमारे जीवन में कुछ घटित होता है,  तब हमें उस बात की गहराई    भी समझ आती है. 

 जीवन में हर दिन कुछ घटता है। और आप उन घटनाओं से हर दिन कुछ सीखते हैं. इसी तरह धागों से काम करते हुए जब वो उलझ गए और उनको बहुत सावधानी से सुलझाया तब इस वाक्य का अर्थ स्पष्ट हुआ कि रिश्ते भी तो  एक कच्चे धागे की तरह होते हैं. 

देखा कि धागे साथ में रखे हों तो उलझते ही रहते हैं. थोड़ा उलझे और उतने में ही सुलझा लिए तो आसानी से सुलझ जाते हैं पर यदि धागे ज्यादा उलझ जाएँ तो लाख कोशिश के बाद भी नहीं सुलझते और उनको तोड़ कर अलग करना होता है और दोबारा न उलझें इसके लिए उनको अलग अलग रखना होता है। कई बार इतने उलझ जाते हैं की अथक प्रयास से सुलझ तो जाते हैं पर एक गाँठ रह ही जाती है,  

किसी भी रिश्ते को अच्छे से निभाने के लिए , चाहे वो रिश्ता पति-पत्नी का हो या भाई बहन  का ,बच्चों का माता पिता से या दोस्ती का रिश्ता ,हर रिश्ते के बीच, कितना भी नज़दीकी रिश्ता हो, उसमें एक स्पेस होना बहुत ज़रूरी है. एक दूसरे के स्पेस में एंटर नहीं करना है. एंटर करते ही उलझन शुरू हो जाएगी और उलझने में,सुलझाने में जीवन जाएगा. तो जीवन जिया कहाँ?  साथ चलना है तो समानांतर चलना है। एक दुसरे का सम्मान करते हुए ,बिना उलझे, सुलझे हुए। 

रिश्ते तभी अच्छे रहते हैं जब एक दूसरे को सम्मान  दिया जाए. अनादर, कटुता, रूखा व्यवहार,अहंकार, धोखा  इन सब के साथ रिश्ते या तो नहीं निभते या कटुता पूर्ण होते हैं  '

अब ये निर्णय  आपको लेना है कि धागों की तरह उलझते,सुलझते हुए जीवन बिताना है या बिना उलझे ,साथ साथ या समानांतर चलना है, हर रिश्ते को सुचारु रूप से निभाने के लिए बस यही एक बात ध्यान में रखनी है. रिश्ते ही हैं जो जीवन में रंग भरते हैं.इन रिश्तों के बिना आप सुख दुःख किस के साथ साझा करेंगे. इसलिए हर किसी के साथ निस्वार्थ प्यार का और  ,विश्वास का रिश्ता बना कर रखें और जीवन का आनंद उठाएं. 

 




 


 


रविवार, 9 मई 2021

 

                                   सबसे सुखी कौन?

 

-  जिसके सर पर  क़र्ज़ हो।

- जिसका उत्तम स्वास्थ्य हो.

- जिसके बच्चे आज्ञाकारी हों और बड़ों का आदर करते हों. 

- जिसके बच्चे आर्थिक रूप से सक्षम हों और उनको कभी किसी से आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़े.

-जो इतने सक्षम हों कि  उनको कभी भी अपने बच्चों से आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़े.

  - जो जीवन को उत्सव समझ कर मस्त हो कर जीवन जियें.

- जो अपने आप में मस्त रहे।  दुःख विपत्ति को सहेज हो कर झेले और सफलता पर  पाँव धरती पर रखे.

 

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

NO BODY IS PERFECT.

 I am happy that i know it.......

" I am not good at many things but im good in few things and I enjoy these few things . That is enough to be happy."

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

सोमवार, 7 सितंबर 2020

script -podcast -2 mantras and their benefits.

नमस्कार , मैं ज्योति कक्कड़ आज एक बार फिर पॉडकास्ट के मंच पर आपके सामने उपस्थित हूँ।

 कैसे हैं आप? कोरोना का कहर रुकने का नाम नहीं ले रहा।  इस समय हम सबको बहुत संयमित रहने की आवश्यकता ( need to remain patient )है। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ( physical and mental health ) के प्रति बहुत जागरूक (aware ) रहना है और अपने आस पास सबको जागरूक करना है. स्वयं को व्यस्त (busy) रखना है। रोज़मर्रा के काम तो हैं हीं , फुर्सत ( free time )में भी हर क्षण  को ख़ुशी से काटना है,अपनी इच्छा और रूचि के अनुसार ( according to your interests and hobbies) . अवसाद को निकट नहीं आने देना है। व्यस्त रहना है कुछ उपयोगी  ( productive ) करने और सीखने में। 

 " सीखने की कोई आयु नहीं होती " के दूसरे एपिसोड में मैं  मन्त्रों के विषय में बात करूंगी। 

मन्त्र क्या है, उनके लाभ क्या  हैं, उनको कब पढ़ना चाहिए. पुस्तकों ,लेखों और इंटरनेट से मैंने  जो सीखा और मेरी  इस बारे में क्या धारणा  है उसको मैं आपके साथ साझा करना  चाहती हूँ।

 यहाँ मैं इसको धार्मिकता से जोड़ कर बात नहीं कर रही हूँ । मेरे लिए मंत्र वो है जिन के द्वारा  कहीं भी किसी भी कार्य में संलग्न रहते हुए ईश्वर के सानिध्य में रहा जा सकता है।  इनके द्वारा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जा सकती है।  रसोई में कार्य करते हुए , बस में सफर करते हुए, और डॉ  के क्लिनिक के बाहर अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में समय काटते हुए, उस  मंत्र को गुनगुनाते हुए। 

 मैंने कहीं पढ़ा कि जो अंतर्मन में समाहित हो वो मन्त्र है।  अर्थात मंत्रोच्चारण (chanting  of  mantra )  के द्वारा शरीर ,मन और आत्मा ( body, mind and soul ) को एकसार कर के ईश्वर के सानिध्य में ( near )रहने का, हर पल उसको अपना सहायक ( helper )अनुभव करने का ,उस की स्तुति ( praise ) करने  का , उससे विनती करने का, उस को हर क्षण धन्यवाद करने  का माध्यम ( medium )है।  ये अर्थपूर्ण शब्द ( meaningful words )आप अपनी धार्मिक पुस्तक ( religious book )से ले सकते हैं या ये शब्द आप के ह्रदय( heart ) से निकले हो सकते हैं। 

 इसको मैं विस्तार ( detail ) से अपने तरीके से बताने का  प्रयास करूंगी.  

प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि हम पर, चाहे हम श्रोता ( listener ) हों या वक्ता ( speaker )अलग प्रभाव डालती है। और हमारा व्यवहार,( behavior ) प्रतिक्रिया ( response ) भी उन्ही के अनुरूप ( according to them )होती  है. 

अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि ( sound )से मस्तिष्क ( mind ) में काम,क्रोध, मोह ,भय,लोभ आदि की भावना उत्त्पन होती है जिसके कारण  दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। रक्त ( blood )में विकार (bad chemicals )
उत्त्पन्न ( produce) होंने लगते हैं , मन अशांत हो जाता है। आपका व्यवहार नकारात्मक ( negative behavior )हो जाता है।  

इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि ( sound of pleasant words ) मस्तिष्क, ह्रदय और रक्त ( brain, heart and blood ) पर अमृत की तरह रसायन ( beneficial chemicals )की वर्षा करती है। इसके परिणाम स्वरुप  ( as a result )हमारा आचरण और व्यवहार सबके साथ मधुर होता है। 
 
मेरे विचार से मन्त्र ऐसा शब्द या ऐसे शब्दों का समूह है जिनके उच्चारण से हम ईश्वर की निकटता का अनुभव करते हैं , उसको अपने सन्मुख  जान कर उसकी स्तुति करते हैं और उसको धन्यवाद देते हैं। साथ ही  मन्त्र एक ऐसी ध्वनि है जिससे उत्त्पन होने वाली तरंगे ( vibrations ) आपकी इच्छा से जुड़ कर उसको पूर्ण करती है. अर्थात आपकी प्रार्थना  ईश्वर तक पहुँचती है. 

नियमित रूप से  मन्त्रों के उच्चारण से शरीरिक और मानसिक बल बढ़ता है, रोग निकट नहीं आते।  मस्तिष्क शांत, एकाग्र ( focused ), संतुलित  ( balanced )और पवित्र ( pure )रहता है।   शरीर, मन और बुद्धि की अशुद्धियाँ ( impurities of body, mind and brain ) दूर होती हैं।( थॉट्स  ईश्वर से निकटता अनुभव होती है। 
मन्त्र को कई कई बार दोहराने से सकारात्मक ऊर्जा ( positive energy )का संचार होता है।  हम कठिन परिस्थिति में  शांत चित्त रहते हैं , निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और स्वयं में विश्वास ( self believe ) उत्त्पन्न होता है।  
 
हमारे शरीर और मन को ऊर्जा अर्थात कार्य करने की शक्ति और स्फूर्ति  ( power and speed )हवा से, सूरज से भोजन और पानी से मिलती है।  उसी ऊर्जा  से हमारा शरीर और मन सुचारूरूप ( perfectly )से कार्य करता है। 
अधिक  शारीरिक श्रम से  शरीरिक ऊर्जा का क्षय ( loss ) होता है और उसी भोजन, हवा पानी से हम उस ऊर्जा को पुनः प्राप्त करते हैं। ये तो हुई मंत्रोच्चारण से शरीर को ऊर्जा मिलने की बात। 
 
अब बात करते हैं मन की।  मन भूत भविष्य ( past and future ) में घूमता रहता है , विचार ( thoughts )आते जाते रहते हैं। उन  विचारों की चाल से  मानसिक ऊर्जा ( mental energy )का क्षय होता है. मन जितना तेज़ भागेगा या जितने ज्यादा  नकारात्मक विचार ( negative thoughts )होंगे उतनी ही ज्यादा मानसिक ऊर्जा का नाश होगा । पुनः ऊर्जा प्राप्ति  के लिए हमको मन को बांधने की आवश्यकता होती है और मन को बांधने का उपाय है मंत्रोच्चारण।  
  ईश्वर को सन्मुख जान कर मन्त्र पढ़ने से हम आत्मकेंद्रित रहेंगे ( self centered ), शांत रहेंगे। साँसों  पर नियंत्रण ( control on breath )होगा।साँसों में एक शांत लय ( rhythm ) स्थापित होगी।  आनंद और शांति ( happiness and peace )का अनुभव होगा. शरीर और मन फिर से ऊर्जा से भर जायेगा ,विश्वास ( believe in self) उत्त्पन्न होगा , दृढ निश्चय ( strong decision)बनेंगे परिणाम स्वरुप आप  रोज़मर्रा के कार्य शांत मन से , दोगुने उत्साह से और कुशलता से करेंगे।  किसी नकारात्मक परिस्थिति में भी संयमित व्यवहार ( balanced behavior in negative situation) करेंगे . मानसिक तनाव( mental stress ) कम होगा. मन प्रफुल्लित ( happy )रहेगा. और नियमित रूप से ( regularly )मंत्रोच्चारण करने से आनंद और शांति आपका स्वभाव बन जायेगा। 

ॐ मन्त्र , गायत्री मंत्र , महामृत्यंजय मंत्र और ऐसे ही कई  मंत्र हैं जिनका हम सर्वाधिक पाठ  करते हैं।  
 आप चाहें तो मंत्रोच्चारण के लिए अपनी अपनी धार्मिक पुस्तक से स्वयं ही कुछ अर्थपूर्ण शब्दों  ( meaningful  words ), पंक्तियों का चयन कर लें। या  ईश्वर के प्रति आपका क्या भाव है उससे सम्बंधित आप शब्द चयन करें. आप ह्रदय की गहराईयों से इसका उच्चारण करेंगे. तो उद्देश्य की पूर्ती  ( fulfillment of your aim )हो जाएगी. उद्देश्य ( aim ) है ईश्वर से निकटता का अनुभव ( experience )
 
मुझको याद है मेरे स्वर्गीय  पिताजी एकांत में बैठ कर तीन शब्दों के लयबद्ध , भावपूर्ण ( with rhythem and emotions ) उच्चारण के द्वारा  ईश्वर  को धन्यवाद देते थे ----- तू ही तू  .  यही उनका मन्त्र था। और ये किसी पुस्तक के नहीं वरन उनके अपने ह्रदय से निकले शब्द थे --अब  जब  मैं इसको बोलती हूँ तो मुझको इसका व्यापक अर्थ अमझ आता है। 
.तू ही तू अर्थात तू सर्वत्र है. तू ही सृष्टि  का रचयिता है और तू ही सब करने और कराने वाला  है. 
 तू सदा सहायक है।  इन तीन शब्दों में सभी भाव समाये हैं। उच्चारण करते समय आपके अपने भाव स्वतः ( without  effort )ही जुड़ते जाएंगे।  इस तरह आप  किन्ही भी शब्दों द्वारा ईश्वर से याचना ( plead)और  उसको धन्यवाद कर सकते हैं।  

ये मेरे अपने अनुभवों  पर आधारित मेरे अपने विचार हैं. आशा है आप इससे सहमत होंगे.  

  अब मैं सर्वत्र  everywhere सर्वाधिक प्रचलित ( most ) ॐ  मंत्र की बात करती हूँ. इसका अर्थ शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।  यह मूल पवित्र ध्वनि है और इसकी उत्त्पत्ति ब्रह्माण्ड  universe)  से हुई है और अंतहीन ( without end point ) ब्रह्माण्ड में सर्वत्र  व्याप्त ( everywhere present )है। ब्रह्माण्ड  में सभी ग्रहों ( planets )में गति ( movement )है। वे अपनी धुरी (axis ) पर घूम रहे हैं या परिक्र्मा कर रहे हैं।  उनकी गति से जो ध्वनि उत्त्पन्न होती है वो हर समय सृष्टि में विद्यमान है और  गूंजती रहती  है। ये ध्वनि नासा ने भी रिकॉर्ड की है और इसके वैज्ञानिक साक्ष्य ( scientifically proved )भी हैं।  यही ध्वनि हमारे अंदर भी है। पर  पूर्ण  ध्यान की अवस्था में जब आपको कोई भी बाहरी ध्वनि सुनाई पड़नी बंद हो जाए तभी आप इसको सुन सकते हैं।  इसके लिए मन को बाहरी जगत से हटा कर परमेश्वर के ध्यान में लीन करना होगा  । पूर्ण  ध्यान की अवस्था में ये ॐ का उच्चारण आपके चारों और एक सकारात्मकता का घेरा ( aura of positivism ) बना देगा। 

 ॐ शब्द ३ अक्षरों से बना है. अ , ऊ और म। ये ३ ही अक्षर हैं जिनके उच्चारण में जीभ का उपयोग नहीं होता है। यदि आप ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते हैं  तो सिर्फआ का या केवल ओ  का या कभी म  अक्षर का उच्चारण करें .इनसे उत्त्पन ध्वनि नाभि से आज्ञा चक्र तक ऊर्जा उत्त्पन्न करती  है। ॐ के उच्चारण से गले में कम्पन्न ( vibration ) होता है और इससे thyroid gland   जाग्रत होता  है. ॐ का उच्चारण स्नायुतंत्र ( nerves system )में ऊर्जा भरता है और उससे सम्बंधित रोगों ( related diseases )से मुक्ति मिलती है।  

ॐ का उच्चारण जोर से करें या धीरे धीरे , ५ बार , १०८ बार या इससे भी अधिक बार। तन्मयता से उच्चारण करने पर इससे निकलने वाली ध्वनि  ( साउंड ) शरीर के हार्मोन स्त्राव ( release ) करने वाली ग्रंथियों से टकरा कर उनके स्त्राव को नियंत्रित ( control ) करके बिमारियों को दूर भगाती  है। स्वभाव् शांत स्थिर होता है । मानसिक तनाव ( stress )से मुक्ति मिलती है.  इम्युनिटी,और जागरूकता में वृद्धि होती  है । दृढ़निश्चई ( firm  decision )होते  हैं । 
मानसिक और बाहरी वातावरण ( atmosphere) की नकारात्मकता ( negativity ) सकारात्मकता ( positivism )में परिवर्तित हुई प्रतीत होगी।

 ॐ मंत्र के उच्चारण के इतने लाभ हैं तो क्यों न नियमित रूप से ( regularly ) इसे करने की आदत बनाई जाए। आज के एपिसोड को इस आशा के साथ समाप्त  करती हूँ कि  आप इसको स्वयं करेंगे और दूसरों को इसके लाभ बताते हुए उनको ॐ उच्चारण करने को प्रेरित करेंगे, धन्यवाद। 
                         
                  ज्योति कक्कड़ 
wapp - 9162183986  and  9308858213 



बुधवार, 26 अगस्त 2020

SCRIPT FOR 1ST PODCAST- LEARN TILL END

नमस्कार ,

मै ज्योति कक्कड़ । आयु ६४ साल.

अपने प्रथम प्रयास के साथ HEADFONE के मंच पर उपस्थित हूँ।  

 मैंने अपने इस नए प्रयास को नाम दिया है " सीखने की कोई आयु नहीं होती  । 

२०२० आया तो हमेशा की तरह सबने एक दूसरे  को नववर्ष की शुभकामनायें दीं। 

२०२० के लिए सबके अपने अपने PLAN रहे होंगे, उम्मीदें रही होंगी। 

किसी को अपने अधूरे काम पूरे करने थे, किसी को नई  दिशा में अपना कदम बढ़ाना था। 

 पर ऊपर वाला  हमारे लिए कुछ और ही प्लान कर रहा था. और फिर उसने हमको ऐसी परिस्थिति में डाला जहाँ सबके दौड़ते भागते जीवन में एक ठहराव सा आ गया। हम सबके जीवन में एक नई परिस्थिति उत्त्पन्न हो गई। वो समय जो हाथ न आता था, हमको रोकने के लिए खुद हमारे साथ रुक गया।  

कोरोना के रूप में ईश्वर ने  हमारे सामने ये नई परिस्थिति उत्त्पन की। सभी के लिए संघर्ष का समय शुरू हो  गया. रोजी रोटी के लिए संघर्ष, जीने के लिए संघर्ष। कई घर से बेघर हुए. और उनके पहले से ही संघर्षरत जीवन में  और कठिन संघर्ष शुरू हुआ। वो बहुत कठिन समय था।  सब तरफ आपाधापी, संशय था।  और ये मनुष्य ही है जो ईश्वर प्रदत्त हर  परीक्षा में  सफल होने के लिए प्रयासरत रहता है.

LOCKDOWN  ने सबका जीने का ढंग बदल दिया। मुहावरा बदल गया जिसमें १९-२० के अंतर का मतलब था नाम मात्र का अंतर पर १९ से २० में प्रवेश करते ही इस धरती पर ऐसा बदलाव आया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

 मनुष्य के लिए संघर्ष का समय आया पर मनुष्य का स्थिर होना पर्यावरण में सुखद बदलाव लाया ।  मानो ईश्वर प्रकृति  का सुन्दर, प्रदुषण रहित रूप दिखा कर हम इंसान को  सुधर जाने का पाठ पढ़ा रहा हो। 

प्राथमिकताएं, ज़रूरतें बदल गई हैं। जीने का ढंग बदल गया है।लोग नयी परिस्थिति के अनुसार ढल रहे हैं। कुछ हैं जो इस बदलाव को सहन न कर पाए, मानसिक संतुलन खोने लगे, जब की दूसरी ओर कुछ लोग इस रुके हुए समय का भरपूर लाभ उठाने में लगे हैं।   

ये हमारे धैर्य की, विपत्ति से निपटने में हमारी समझदारी की परीक्षा का समय है। समय है कर्म  का , समय है रचनात्मकता का, समय है अपनी प्रतिभा को निखारने का. कुछ नया करने और सीखने का। और इस सीखने में स्मार्टफोन और इंटरनेट मिल कर हमारे सहायक बने हैं। 

मैंने भी इस समय का सदुपयोग करने का प्रयास किया है। दराज़ों को खंगाला तो सालों पुरानी अखबारों की cuttings मिलीं। कुछ रसोई से सम्बंधित  लेख , कुछ सौंदर्य और सेहत से सम्बंधित लेख, दादी माँ के नुस्खे, कुछ पसंदीदा फ़िल्मी गाने, कुछ भजन ,कुछ आध्यात्म के लेख,और भी न जाने क्या क्या,जो wapp और facebook  की दुनिआ में प्रवेश के बाद दराज़ के अंदर सोये पड़े थे। 

समय और आयु  बढ़ने के साथ मनुष्य की रुचियाँ बदल जाती हैं और कई बार जीवन की आपाधापी में दबी रह जाती हैं और कहीं पीछे छूट  जाती हैं। 

पाया कि  पकवान बनाने में अब कोई ख़ास रूचि रही नहीं . बचा संगीत ,अध्यात्म और सेहत जिनकी और इस आयु में झुकाव हो ही जाता है। अब इन्ही के साथ कुछ  नया करने का प्रयास किया है। प्रयास है तो त्रुटि भी होगी। उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। इसमें मेरी बुद्धि का प्रयोग उतना ही है कि जो पढ़ा ,नेट पर  देखा, सुना उसको एक नए मंच पर लाने का प्रयास किया। 

सीखने की कोई आयु नहीं होती. इधर पॉडकास्ट का बहुत नाम सुना. गूगल से इसकी जानकारी ली।  गूगल ऐसी  पाठशाला है जहाँ आप किसी विषय पर प्रश्न पूछो तो वो उस विषय  पर ज्ञान देने के साथ आगे के लिए रास्ते दिखाता है।  उसी से कई मंच पता लगे जहाँ आप पॉडकास्ट बना और प्रस्तुत कर सकते हैं।  

अब अगला कदम था कि  पॉडकास्ट का विषय क्या हो ? तो विचार आया कि पूजा के समय बहुत सुकून देने वाले मन्त्र हम पढ़ते  हैं या जाप करते हैं. कई बार हमको उनका अर्थ नहीं पता होता.  विचार आया की जो मंत्र बिना उनका अर्थ जाने , पढ़ने पर  इतना सुकून देते हैं यदि उनका अर्थ पता हो तो शायद उनके जाप में और भाव जुड़ेगा. इसी विचार के साथ अगले एपिसोड की शुरुआत करूंगी  कुछ मंत्र और उनके अर्थ के साथ । 

एक बार फिर दोहराना चाहूंगी कि जो प्रस्तुत कर रही हूँ उसका मुझको अल्प ज्ञान है। वो कहीं से पढ़ा या सुना है. इसलिए किसी भी त्रुटि के लिए  क्षमा चाहती हूँऔर किसी भी सुधार  के लिए आपसे सुझाव की अपेक्षा रखती हूँ क्योंकि सीखने की कोई आयु  नहीं होती। 🙏