सोमवार, 25 मार्च 2024

from acharya prashant

   आचार्य प्रशांत के you tube प्रवचन से। ..... 



जीवन  एक है, अनमोल है.एक बार मिला है. अच्छे से क्यों ना जिया जाए. घुट घुट कर जीना दब कर जीना  आवश्यक नहीं है. पूरी आज़ादी रखिये कुछ भी जानने  की और सीखने की। कोई obligation  न लें। दूसरों के विचारों ,इरादों ,सुझावों  ,इच्छाओं और आज्ञा के अनुसार जीना आवश्यक नहीं है..अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो आप आज़ादी से नहीं जी रहे, आज़ादी से जीना ही जीना  है. 

क्या करना है क्या नहीं इसका सही निर्णय लें. जो आपको पसंद है वो करें। उस में आपको ख़ुशी मिलेगी। और जीने के लिए खुश रहना आपका अधिकार है आपका जीवन है.इसको कैसे जीना है इसका निर्णय आपको लेना है..बंधन के बाहर आज़ादी है और आज़ादी में आंनद है। घुट घुट कर जीना और फिर ऐसे ही मर जाना अपने साथ और अपने जीवन के साथ अन्याय है। आत्मसम्मान के साथ जीना ही सही जीना है।  

सम्बन्ध बनते हैं बेहतरी के लिए। अगर उनमें दुर्गति हो रही है और आज़ाद होने की ताकत नहीं है तो स्वयं में रहना बेहतर होगा।.आपका कल्याण किसमें है ये आपको समझना है.आप प्रसन्न हैं तभी आप दूसरों को  प्रसन्नता दे सकते  हैं। 

आसानी से किसी बात को  अपना कर्तव्य  नहीं  मान  लेना  चाहिए। आप जिस बात को अपना कर्त्तव्य  मान लेते हैं वही आपके  जीवन की दिशा निर्धारित करता  है। अनिच्छा से किसी और की सेवा करना तुम्हारा कर्त्तव्य नहीं है।  कभी कभी विद्रोही होना अच्छा है.वर्ना बंधन में रहने को बाधित रहोगे। जीवन स्वतंत्र हो कर जीना चाहिये।  किसी  दबाव  में नहीं। कोई रास्ता ऐसा नहीं है जहाँ मोड़ न ले सको या जहाँ से दिशा न बदली जा सके। 

बंधन आप तभी स्वीकार करते हैं जब स्वार्थ सिद्ध होता है। आज़ादी के सामने सब तुच्छ है। ऐसा क्या स्वार्थ है जो आज़ादी से बढ़ कर है? अगर अच्छा साथ ने मिले तो अपने आप में रहिये, मस्त रहिये और जीवन का आनंद उठाइये