सोमवार, 7 सितंबर 2020

script -podcast -2 mantras and their benefits.

नमस्कार , मैं ज्योति कक्कड़ आज एक बार फिर पॉडकास्ट के मंच पर आपके सामने उपस्थित हूँ।

 कैसे हैं आप? कोरोना का कहर रुकने का नाम नहीं ले रहा।  इस समय हम सबको बहुत संयमित रहने की आवश्यकता ( need to remain patient )है। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ( physical and mental health ) के प्रति बहुत जागरूक (aware ) रहना है और अपने आस पास सबको जागरूक करना है. स्वयं को व्यस्त (busy) रखना है। रोज़मर्रा के काम तो हैं हीं , फुर्सत ( free time )में भी हर क्षण  को ख़ुशी से काटना है,अपनी इच्छा और रूचि के अनुसार ( according to your interests and hobbies) . अवसाद को निकट नहीं आने देना है। व्यस्त रहना है कुछ उपयोगी  ( productive ) करने और सीखने में। 

 " सीखने की कोई आयु नहीं होती " के दूसरे एपिसोड में मैं  मन्त्रों के विषय में बात करूंगी। 

मन्त्र क्या है, उनके लाभ क्या  हैं, उनको कब पढ़ना चाहिए. पुस्तकों ,लेखों और इंटरनेट से मैंने  जो सीखा और मेरी  इस बारे में क्या धारणा  है उसको मैं आपके साथ साझा करना  चाहती हूँ।

 यहाँ मैं इसको धार्मिकता से जोड़ कर बात नहीं कर रही हूँ । मेरे लिए मंत्र वो है जिन के द्वारा  कहीं भी किसी भी कार्य में संलग्न रहते हुए ईश्वर के सानिध्य में रहा जा सकता है।  इनके द्वारा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जा सकती है।  रसोई में कार्य करते हुए , बस में सफर करते हुए, और डॉ  के क्लिनिक के बाहर अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में समय काटते हुए, उस  मंत्र को गुनगुनाते हुए। 

 मैंने कहीं पढ़ा कि जो अंतर्मन में समाहित हो वो मन्त्र है।  अर्थात मंत्रोच्चारण (chanting  of  mantra )  के द्वारा शरीर ,मन और आत्मा ( body, mind and soul ) को एकसार कर के ईश्वर के सानिध्य में ( near )रहने का, हर पल उसको अपना सहायक ( helper )अनुभव करने का ,उस की स्तुति ( praise ) करने  का , उससे विनती करने का, उस को हर क्षण धन्यवाद करने  का माध्यम ( medium )है।  ये अर्थपूर्ण शब्द ( meaningful words )आप अपनी धार्मिक पुस्तक ( religious book )से ले सकते हैं या ये शब्द आप के ह्रदय( heart ) से निकले हो सकते हैं। 

 इसको मैं विस्तार ( detail ) से अपने तरीके से बताने का  प्रयास करूंगी.  

प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि हम पर, चाहे हम श्रोता ( listener ) हों या वक्ता ( speaker )अलग प्रभाव डालती है। और हमारा व्यवहार,( behavior ) प्रतिक्रिया ( response ) भी उन्ही के अनुरूप ( according to them )होती  है. 

अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि ( sound )से मस्तिष्क ( mind ) में काम,क्रोध, मोह ,भय,लोभ आदि की भावना उत्त्पन होती है जिसके कारण  दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। रक्त ( blood )में विकार (bad chemicals )
उत्त्पन्न ( produce) होंने लगते हैं , मन अशांत हो जाता है। आपका व्यवहार नकारात्मक ( negative behavior )हो जाता है।  

इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि ( sound of pleasant words ) मस्तिष्क, ह्रदय और रक्त ( brain, heart and blood ) पर अमृत की तरह रसायन ( beneficial chemicals )की वर्षा करती है। इसके परिणाम स्वरुप  ( as a result )हमारा आचरण और व्यवहार सबके साथ मधुर होता है। 
 
मेरे विचार से मन्त्र ऐसा शब्द या ऐसे शब्दों का समूह है जिनके उच्चारण से हम ईश्वर की निकटता का अनुभव करते हैं , उसको अपने सन्मुख  जान कर उसकी स्तुति करते हैं और उसको धन्यवाद देते हैं। साथ ही  मन्त्र एक ऐसी ध्वनि है जिससे उत्त्पन होने वाली तरंगे ( vibrations ) आपकी इच्छा से जुड़ कर उसको पूर्ण करती है. अर्थात आपकी प्रार्थना  ईश्वर तक पहुँचती है. 

नियमित रूप से  मन्त्रों के उच्चारण से शरीरिक और मानसिक बल बढ़ता है, रोग निकट नहीं आते।  मस्तिष्क शांत, एकाग्र ( focused ), संतुलित  ( balanced )और पवित्र ( pure )रहता है।   शरीर, मन और बुद्धि की अशुद्धियाँ ( impurities of body, mind and brain ) दूर होती हैं।( थॉट्स  ईश्वर से निकटता अनुभव होती है। 
मन्त्र को कई कई बार दोहराने से सकारात्मक ऊर्जा ( positive energy )का संचार होता है।  हम कठिन परिस्थिति में  शांत चित्त रहते हैं , निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और स्वयं में विश्वास ( self believe ) उत्त्पन्न होता है।  
 
हमारे शरीर और मन को ऊर्जा अर्थात कार्य करने की शक्ति और स्फूर्ति  ( power and speed )हवा से, सूरज से भोजन और पानी से मिलती है।  उसी ऊर्जा  से हमारा शरीर और मन सुचारूरूप ( perfectly )से कार्य करता है। 
अधिक  शारीरिक श्रम से  शरीरिक ऊर्जा का क्षय ( loss ) होता है और उसी भोजन, हवा पानी से हम उस ऊर्जा को पुनः प्राप्त करते हैं। ये तो हुई मंत्रोच्चारण से शरीर को ऊर्जा मिलने की बात। 
 
अब बात करते हैं मन की।  मन भूत भविष्य ( past and future ) में घूमता रहता है , विचार ( thoughts )आते जाते रहते हैं। उन  विचारों की चाल से  मानसिक ऊर्जा ( mental energy )का क्षय होता है. मन जितना तेज़ भागेगा या जितने ज्यादा  नकारात्मक विचार ( negative thoughts )होंगे उतनी ही ज्यादा मानसिक ऊर्जा का नाश होगा । पुनः ऊर्जा प्राप्ति  के लिए हमको मन को बांधने की आवश्यकता होती है और मन को बांधने का उपाय है मंत्रोच्चारण।  
  ईश्वर को सन्मुख जान कर मन्त्र पढ़ने से हम आत्मकेंद्रित रहेंगे ( self centered ), शांत रहेंगे। साँसों  पर नियंत्रण ( control on breath )होगा।साँसों में एक शांत लय ( rhythm ) स्थापित होगी।  आनंद और शांति ( happiness and peace )का अनुभव होगा. शरीर और मन फिर से ऊर्जा से भर जायेगा ,विश्वास ( believe in self) उत्त्पन्न होगा , दृढ निश्चय ( strong decision)बनेंगे परिणाम स्वरुप आप  रोज़मर्रा के कार्य शांत मन से , दोगुने उत्साह से और कुशलता से करेंगे।  किसी नकारात्मक परिस्थिति में भी संयमित व्यवहार ( balanced behavior in negative situation) करेंगे . मानसिक तनाव( mental stress ) कम होगा. मन प्रफुल्लित ( happy )रहेगा. और नियमित रूप से ( regularly )मंत्रोच्चारण करने से आनंद और शांति आपका स्वभाव बन जायेगा। 

ॐ मन्त्र , गायत्री मंत्र , महामृत्यंजय मंत्र और ऐसे ही कई  मंत्र हैं जिनका हम सर्वाधिक पाठ  करते हैं।  
 आप चाहें तो मंत्रोच्चारण के लिए अपनी अपनी धार्मिक पुस्तक से स्वयं ही कुछ अर्थपूर्ण शब्दों  ( meaningful  words ), पंक्तियों का चयन कर लें। या  ईश्वर के प्रति आपका क्या भाव है उससे सम्बंधित आप शब्द चयन करें. आप ह्रदय की गहराईयों से इसका उच्चारण करेंगे. तो उद्देश्य की पूर्ती  ( fulfillment of your aim )हो जाएगी. उद्देश्य ( aim ) है ईश्वर से निकटता का अनुभव ( experience )
 
मुझको याद है मेरे स्वर्गीय  पिताजी एकांत में बैठ कर तीन शब्दों के लयबद्ध , भावपूर्ण ( with rhythem and emotions ) उच्चारण के द्वारा  ईश्वर  को धन्यवाद देते थे ----- तू ही तू  .  यही उनका मन्त्र था। और ये किसी पुस्तक के नहीं वरन उनके अपने ह्रदय से निकले शब्द थे --अब  जब  मैं इसको बोलती हूँ तो मुझको इसका व्यापक अर्थ अमझ आता है। 
.तू ही तू अर्थात तू सर्वत्र है. तू ही सृष्टि  का रचयिता है और तू ही सब करने और कराने वाला  है. 
 तू सदा सहायक है।  इन तीन शब्दों में सभी भाव समाये हैं। उच्चारण करते समय आपके अपने भाव स्वतः ( without  effort )ही जुड़ते जाएंगे।  इस तरह आप  किन्ही भी शब्दों द्वारा ईश्वर से याचना ( plead)और  उसको धन्यवाद कर सकते हैं।  

ये मेरे अपने अनुभवों  पर आधारित मेरे अपने विचार हैं. आशा है आप इससे सहमत होंगे.  

  अब मैं सर्वत्र  everywhere सर्वाधिक प्रचलित ( most ) ॐ  मंत्र की बात करती हूँ. इसका अर्थ शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।  यह मूल पवित्र ध्वनि है और इसकी उत्त्पत्ति ब्रह्माण्ड  universe)  से हुई है और अंतहीन ( without end point ) ब्रह्माण्ड में सर्वत्र  व्याप्त ( everywhere present )है। ब्रह्माण्ड  में सभी ग्रहों ( planets )में गति ( movement )है। वे अपनी धुरी (axis ) पर घूम रहे हैं या परिक्र्मा कर रहे हैं।  उनकी गति से जो ध्वनि उत्त्पन्न होती है वो हर समय सृष्टि में विद्यमान है और  गूंजती रहती  है। ये ध्वनि नासा ने भी रिकॉर्ड की है और इसके वैज्ञानिक साक्ष्य ( scientifically proved )भी हैं।  यही ध्वनि हमारे अंदर भी है। पर  पूर्ण  ध्यान की अवस्था में जब आपको कोई भी बाहरी ध्वनि सुनाई पड़नी बंद हो जाए तभी आप इसको सुन सकते हैं।  इसके लिए मन को बाहरी जगत से हटा कर परमेश्वर के ध्यान में लीन करना होगा  । पूर्ण  ध्यान की अवस्था में ये ॐ का उच्चारण आपके चारों और एक सकारात्मकता का घेरा ( aura of positivism ) बना देगा। 

 ॐ शब्द ३ अक्षरों से बना है. अ , ऊ और म। ये ३ ही अक्षर हैं जिनके उच्चारण में जीभ का उपयोग नहीं होता है। यदि आप ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते हैं  तो सिर्फआ का या केवल ओ  का या कभी म  अक्षर का उच्चारण करें .इनसे उत्त्पन ध्वनि नाभि से आज्ञा चक्र तक ऊर्जा उत्त्पन्न करती  है। ॐ के उच्चारण से गले में कम्पन्न ( vibration ) होता है और इससे thyroid gland   जाग्रत होता  है. ॐ का उच्चारण स्नायुतंत्र ( nerves system )में ऊर्जा भरता है और उससे सम्बंधित रोगों ( related diseases )से मुक्ति मिलती है।  

ॐ का उच्चारण जोर से करें या धीरे धीरे , ५ बार , १०८ बार या इससे भी अधिक बार। तन्मयता से उच्चारण करने पर इससे निकलने वाली ध्वनि  ( साउंड ) शरीर के हार्मोन स्त्राव ( release ) करने वाली ग्रंथियों से टकरा कर उनके स्त्राव को नियंत्रित ( control ) करके बिमारियों को दूर भगाती  है। स्वभाव् शांत स्थिर होता है । मानसिक तनाव ( stress )से मुक्ति मिलती है.  इम्युनिटी,और जागरूकता में वृद्धि होती  है । दृढ़निश्चई ( firm  decision )होते  हैं । 
मानसिक और बाहरी वातावरण ( atmosphere) की नकारात्मकता ( negativity ) सकारात्मकता ( positivism )में परिवर्तित हुई प्रतीत होगी।

 ॐ मंत्र के उच्चारण के इतने लाभ हैं तो क्यों न नियमित रूप से ( regularly ) इसे करने की आदत बनाई जाए। आज के एपिसोड को इस आशा के साथ समाप्त  करती हूँ कि  आप इसको स्वयं करेंगे और दूसरों को इसके लाभ बताते हुए उनको ॐ उच्चारण करने को प्रेरित करेंगे, धन्यवाद। 
                         
                  ज्योति कक्कड़ 
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