रिश्ते
नमस्कार। आज बहुत लम्बे अंतराल के बाद मैं अपने चौथे पॉडकास्ट के साथ आपके सन्मुख उपस्थित हूँ. आज धागे सुलझाते हुए एक कहावत याद आई कि रिश्ते कच्चे धागों की तरह होते हैं,और फिर रिश्तों के बारे में बात करने का मन हो गया.
जैसा की पहले एक एपिसोड में मैंने बोला कि जीवन एक यात्रा है जो जन्म से शुरू हो कर मृत्यु पर समाप्त होती है.
इस पूरी जीवन यात्रा में हम कई रिश्तों को निभाते है. ,कुछ रिश्ते जन्मजात होते हैं कुछ करीबी, कुछ दूर के. पर क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन की परिस्थितियां अलग हैं तो हर एक का स्वभाव भी अलग होता है, अपने शांत या उग्र स्वभाव के अनुसार हर व्यक्ति रिश्तों को अपने ढंग से निभाता है. कुछ रिश्ते प्यार से भरे होते हैं और कुछ मनमुटाव वाले. पर मनमुटाव को दूर करके रिश्ते निभाना भी एक कला है. हर एक के साथ तालमेल बैठा कर , कुछ नज़रअंदाज़ करके, कुछ सामंजस्य बैठा कर यदि सभी के साथ हम अच्छे रिश्ते रखें तो जीवन तनावरहित और उल्लासपूर्ण हँसते खेलते बीतता है. और कौन जीवन को तनावपूर्ण जीना चाहता है?
रिश्ते एक कच्चे धागे की तरह होते हैं। ऐसी कोई भी कहावत हमारे लिए सिर्फ एक वाक्य होती हैं।
हर बात हम किताबों से नहीं सीखते। हर बात हम दूसरों की सुन कर भी नहीं सीखते.
सीखते हैं हम अपने रोज़मर्रा के अनुभवोँ से।
और तब हम इसका मतलब भी समझते हैं. जब हमारे जीवन में कुछ घटित होता है, तब हमें उस बात की गहराई भी समझ आती है.
जीवन में हर दिन कुछ घटता है। और आप उन घटनाओं से हर दिन कुछ सीखते हैं. इसी तरह धागों से काम करते हुए जब वो उलझ गए और उनको बहुत सावधानी से सुलझाया तब इस वाक्य का अर्थ स्पष्ट हुआ कि रिश्ते भी तो एक कच्चे धागे की तरह होते हैं.
देखा कि धागे साथ में रखे हों तो उलझते ही रहते हैं. थोड़ा उलझे और उतने में ही सुलझा लिए तो आसानी से सुलझ जाते हैं पर यदि धागे ज्यादा उलझ जाएँ तो लाख कोशिश के बाद भी नहीं सुलझते और उनको तोड़ कर अलग करना होता है और दोबारा न उलझें इसके लिए उनको अलग अलग रखना होता है। कई बार इतने उलझ जाते हैं की अथक प्रयास से सुलझ तो जाते हैं पर एक गाँठ रह ही जाती है,
किसी भी रिश्ते को अच्छे से निभाने के लिए , चाहे वो रिश्ता पति-पत्नी का हो या भाई बहन का ,बच्चों का माता पिता से या दोस्ती का रिश्ता ,हर रिश्ते के बीच, कितना भी नज़दीकी रिश्ता हो, उसमें एक स्पेस होना बहुत ज़रूरी है. एक दूसरे के स्पेस में एंटर नहीं करना है. एंटर करते ही उलझन शुरू हो जाएगी और उलझने में,सुलझाने में जीवन जाएगा. तो जीवन जिया कहाँ? साथ चलना है तो समानांतर चलना है। एक दुसरे का सम्मान करते हुए ,बिना उलझे, सुलझे हुए।
रिश्ते तभी अच्छे रहते हैं जब एक दूसरे को सम्मान दिया जाए. अनादर, कटुता, रूखा व्यवहार,अहंकार, धोखा इन सब के साथ रिश्ते या तो नहीं निभते या कटुता पूर्ण होते हैं '
अब ये निर्णय आपको लेना है कि धागों की तरह उलझते,सुलझते हुए जीवन बिताना है या बिना उलझे ,साथ साथ या समानांतर चलना है, हर रिश्ते को सुचारु रूप से निभाने के लिए बस यही एक बात ध्यान में रखनी है. रिश्ते ही हैं जो जीवन में रंग भरते हैं.इन रिश्तों के बिना आप सुख दुःख किस के साथ साझा करेंगे. इसलिए हर किसी के साथ निस्वार्थ प्यार का और ,विश्वास का रिश्ता बना कर रखें और जीवन का आनंद उठाएं.