शुक्रवार, 9 जून 2023

   उम्र 

मैं ज्योति कक्कड़ ,सीखने की कोई उम्र नहीं होती के अपने पाँचवे पॉडकास्ट के साथ एक बार फिर पोडकास्टर्स के माध्यम से अपने मन की बात करने आई हूँ. आप हँसे क्यों?

हर किसी के पास मन होता है ,जिसमें बहुत सी बातें होती हैं और अपने  मन की बात साझा  करके आनंद भी मिलता है और सुझाव भी। 

पर  हर कोई अच्छा वक्ता नहीं होता। अर्थात हर किसी में वो हुनर नहीं होता कि अपने मन की बात बोल कर कह सके। मुझ में भी नहीं है इसलिए मैं भी अपने मन की बात अपने ब्लॉग में  लिखती हूँ  और कभी कभी अपने लिखे को यहाँ  आपसे पॉडकास्ट के माध्यम से साझा करने आ जाती हूँ.  . तो  हुआ यूँ  कि 

मैं पांच भाई बहन  की सबसे छोटी बहन  जब ब्याह कर एक संयुक्त परिवार की बहु के रूप में ससुराल पहुंची तो जिम्मेरदारिओं के मकड़जाल में जो घिरी तो घिरती ही चली गई। 

ऐसा नहीं की खुद की एहमियत भूल गई पर हाँ, खुद की एहमियत को पीछे रखा. ये आम भारतीय गृहिणी  की कहानी है. नया इसमें कुछ नहीं है. 

पर कुलबुलाहट और  बेचैनी तो थी कि ये गृहस्थी तो ऐसा मकड़जाल है कि  जिसमें फंसती ही जा रही हूँ। चाह रही हूँ थोड़ा सर  बाहर  निकालना पर  घेरा बढ़ता जा रहा है। सबके लिए समय निकाल रही हूँ पैर अपने लिए क्यों नहीं? सबको खुश कर रही हूँ पर क्या मैं खुश हूँ ? 

और फिर ठान ही  लिया कि ऐसे नहीं चलेगा। अपने लिए कुछ तो करना है। और फिर एक छोटा कदम बढ़ाया। औरअपना सर उस मकड़ जाल से निकाला। आदत सी हो गई थी उस मकड़जाल में रहने की तो अपने पैर उसी में फँसा कर रखे। और पंख थोड़ा फैलाए।   

 कुछ अपनी ख़ुशी के लिए किया जाए ये सोच कर १० साल पहले घर से ही एक छोटा व्यापार शुरू किया. जो आज मुझको ख़ुशी के साथ आत्मविश्वास और संतुष्टि भी दे रहा है. 

तो अब विषय पर आते हैं और बात करते हैं उम्र की घर से ही काम शुरू किया ५७ की उम्र में।  और गलतियां करते, गलतियों से खुद ही सीखते सीखते छोटे से काम को जो टाइम पास करने के लिए शुरू किया था उसको १० साल आगे ले ही आई। तो जिस उम्र में लोग नौकरी से रिटायर होते हैं ,उस उम्र में  मैंने काम शुरू किया। 

तो अब जब ३ कम ७० की हो गई तो अक्सर एक वाक्य सुनती हूँ कि बहुत अच्छा लगता है यह देख कर कि आप इस उम्र में काम कर रही हैं. अकेले  संभाल रही हैं?  मन  ही  मन इसको तारीफ समझ कर  खुश होती  हूँ पर पूछने को मन करता है कि काम करने की क्या उम्र होती है. और किस उम्र में काम  बंद कर देना चाहिए, 

मेरे हिसाब से तो जब तक चाह है,और जब तक आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं , जब तक आप काम को एन्जॉय रही है, और जब तक सभी परिस्थितियां आपके पक्ष में है काम करना चाहिए,

सभी को पता है कि कुशलता से घर गृहस्थी चलाने में  किसी नौकरी और रोज़गार से कम समय और मेहनत नहीं लगती और उसको  गृहणियां ८०=८५  वर्ष की उम्र में भी कुशलता से चलाती हैँ।   इस बात को समझना बहुत आवश्यक है कि गृहस्थी  चलाई है तो हममे कुछ भी करने की काबिलियत है,.वर्ना गृहणियां बहुत हीन भावना से बोलती हैं कि नही मैं कुछ नहीं करती ,घर गृहस्थी ही संभालती हूँ. आप समझिये की आप बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभा रही हैं। आप स्वयं घर पैर रह कर, हर एक की ज़रूरतों  का  ध्यान रख कर ,घर की सभी  जिम्मेदारी उठा कर घर के बाकी  सदस्यों को घर से बाहर जा कर उनका कर्रिएर बनाने का मौका दे रही हैं. 

  गृहस्थी चलाते चलाते व्यापार करने की ट्रेनिंग हम को अनजाने में ही  मिल जाती  है . 

 कुकिंग स्किल्स के साथ ही  टाइम मॅनॅग्मेंट, फाइनेंस मॅनॅग्मेंट, बजट मॅनॅग्मेंट , पब्लिक डीलिंग स्टाफ मॅनॅग्मेंट और भी कोई स्किल व्यापार के लिए चाहिए  तो वो भी गृहस्थी चला कर हम गृहणियां सीख ही जाती हैं. इसी से जब गृहस्थी चला ली तो  व्यापार भी चला ही लिया। व्यापार करके आपने पैसे कमाए तो ये  उतनी बड़ी उपलब्धि नहीं है जितना रसोई से निकल नए फील्ड में काम करके आपने कुछ नया  सीखा,समय का सदुपयोग कियाअपने लिए समय निकाला इससे आपका  आत्मविश्वास बढ़ा और आप अपने लिए भी जी रही हैं. फिर उम्र को आप पीछे छोड़ देती हैं. कोई याद दिला दे तो उम्र की गिनती  याद आ जाती  है। 

वैसे भी  जिसने पहले घर गृहस्थी संभाली और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाया. उसको ६० की उम्र के बाद अपने को वैसे ही पहले की तरह  व्यस्त रखने  से  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ ठीक रहता  है। व्यस्त  रहने का रास्ता अपनी अपनी  पारिवारिक परिस्थिति पर निर्भर करता है  या तो अपने शौक पूरे करने चाहिए या कोई काम ज़रूर करना चाहिए। जब कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, जब बच्चे जीवन में  सेटल हो गये हैं तो उस खालीपन को भरने के लिए व्यस्त रहने का इससे अच्छा रास्ता नहीं है. काम ऐसा जो आपको ख़ुशी दे। आपके शौक पूरे करे, और जिससे आप कुछ नया सीखें  मकसद है स्वयं को खुश रखना और जीवन को अपने अपने  लिए जीना। आर्थिक आत्मनिर्भरता बाद  में आती है पहले शारीरिकऔर  मानसिक दशा बदलती  है.  .  

 lockdown में समय की मांग को देखते हुए गृहणियों ने अपनी पसंद के कार्य को रोज़गार बनाया  टिफ़िन सर्विस  हो या  अचार पापड़  बनाना, पढ़ाना हो या खुद  कुछ सीखना.  

अब जब बचे हुए समय में मैंने  पसंद का काम किया तो उससे ख़ुशी के साथ रोज़ कुछ नया सीखने को मिला। रोज़ नए लोगों से मिलना होता हैं। उन की सुन कर अपनी कह कर ज्ञान का आदान प्रदान हो जाता है. । 

 समय के साथ दुनिया  बदल रही है. और तेज़ रफ़्तार से बदल  रही  है और प्रतिदिन एक नई  चुनौती सामने  आती  है और  हम गृहनियों  को चुनौती का सामना करना अच्छी तरह से आता है.  

  जब एक औरत ७० की उम्र में सड़क किनारे सब्ज़ी बेच रही है या दूरों के घर बर्तन,सफाई कर रही  तो हम घर बैठ कर हर सहूलियत के बीच जो कर रहे हैं वो कुछ भी नहीं.  

अगर कुछ  करने  इच्छा है तो  उम्र की न सोचें और अपनी रूचि, क्षमता ,अपनी  पारिवारिक परिस्थिती के अनुसार जो कर सकें ,करें।  नहीं इच्छा  है तो भी कोई बात नहीं। मकसद है ख़ुशी से जीना।  ता उम्र  ज़िम्मेदारियाँ  रूप बदल कर आती रहेंगी। पहले आप माँ थी ,अब दादी हैं। उम्र के साथ बढ़ती ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करना भी बहुत बड़ा काम है.  गृहस्थी में उम्र बढ़ने के साथ हमारी  भागीदारी बदल जातो है। और समय के साथ खुद को बदल कर,बदलती हुई जिम्मेदारिओं  को सहर्ष अपना कर ही हम गृहणियां आगे बढ़ती जाती  हैं।  

काम  करने और   सीखने के  लिए कोई उम्र  नहीं होती. .और अभी उम्र है अपने हिसाब से  जीवन जीने की . काम करने की।  समय अगर चलते फिरते, ख़ुशी के साथ बीते तो इससे अच्छा कुछ नहीं. तो उम्र की  गिनती अब नहीं करनी है। हर दिन को जीना है. समय के साथ आगे बढ़ना है। 

मिलते हैं अगले  एपिसोड में जल्दी ही कुछ और मन की बात करने को।  खुश रहे स्वस्थ रहे। 


 


 

सोमवार, 8 मई 2023

रिश्ते - कच्चे धागे या पक्के. script for podcast 4


रिश्ते 
नमस्कार। आज बहुत लम्बे अंतराल के बाद मैं अपने चौथे पॉडकास्ट के साथ आपके सन्मुख उपस्थित  हूँ. आज धागे सुलझाते हुए एक कहावत याद आई कि रिश्ते कच्चे धागों की तरह होते हैं,और फिर रिश्तों के बारे में बात करने का मन हो गया. 
  जैसा की पहले एक एपिसोड में मैंने बोला कि जीवन एक यात्रा है जो जन्म से शुरू हो कर मृत्यु पर समाप्त होती है. 
इस पूरी जीवन यात्रा में हम कई रिश्तों को निभाते है. ,कुछ रिश्ते जन्मजात होते हैं  कुछ करीबी, कुछ  दूर के. पर क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन की परिस्थितियां अलग हैं तो हर एक का स्वभाव भी अलग होता है, अपने शांत या उग्र स्वभाव के अनुसार हर व्यक्ति रिश्तों को अपने ढंग से निभाता है. कुछ रिश्ते प्यार से भरे होते हैं और कुछ मनमुटाव वाले. पर मनमुटाव को दूर करके रिश्ते निभाना भी एक कला है. हर एक के साथ तालमेल बैठा कर , कुछ  नज़रअंदाज़ करके, कुछ सामंजस्य बैठा कर यदि सभी के साथ हम अच्छे रिश्ते रखें तो जीवन तनावरहित और उल्लासपूर्ण हँसते खेलते बीतता है. और कौन जीवन को तनावपूर्ण जीना चाहता है?  

  रिश्ते  एक कच्चे धागे की तरह होते हैं। ऐसी कोई भी कहावत हमारे लिए  सिर्फ एक वाक्य होती  हैं।
  हर बात हम  किताबों से नहीं सीखते। हर बात हम दूसरों की सुन कर भी नहीं सीखते. 
  सीखते हैं हम अपने रोज़मर्रा के अनुभवोँ  से। 
 और तब हम इसका मतलब भी समझते हैं. जब हमारे जीवन में कुछ घटित होता है,  तब हमें उस बात की गहराई    भी समझ आती है. 

 जीवन में हर दिन कुछ घटता है। और आप उन घटनाओं से हर दिन कुछ सीखते हैं. इसी तरह धागों से काम करते हुए जब वो उलझ गए और उनको बहुत सावधानी से सुलझाया तब इस वाक्य का अर्थ स्पष्ट हुआ कि रिश्ते भी तो  एक कच्चे धागे की तरह होते हैं. 

देखा कि धागे साथ में रखे हों तो उलझते ही रहते हैं. थोड़ा उलझे और उतने में ही सुलझा लिए तो आसानी से सुलझ जाते हैं पर यदि धागे ज्यादा उलझ जाएँ तो लाख कोशिश के बाद भी नहीं सुलझते और उनको तोड़ कर अलग करना होता है और दोबारा न उलझें इसके लिए उनको अलग अलग रखना होता है। कई बार इतने उलझ जाते हैं की अथक प्रयास से सुलझ तो जाते हैं पर एक गाँठ रह ही जाती है,  

किसी भी रिश्ते को अच्छे से निभाने के लिए , चाहे वो रिश्ता पति-पत्नी का हो या भाई बहन  का ,बच्चों का माता पिता से या दोस्ती का रिश्ता ,हर रिश्ते के बीच, कितना भी नज़दीकी रिश्ता हो, उसमें एक स्पेस होना बहुत ज़रूरी है. एक दूसरे के स्पेस में एंटर नहीं करना है. एंटर करते ही उलझन शुरू हो जाएगी और उलझने में,सुलझाने में जीवन जाएगा. तो जीवन जिया कहाँ?  साथ चलना है तो समानांतर चलना है। एक दुसरे का सम्मान करते हुए ,बिना उलझे, सुलझे हुए। 

रिश्ते तभी अच्छे रहते हैं जब एक दूसरे को सम्मान  दिया जाए. अनादर, कटुता, रूखा व्यवहार,अहंकार, धोखा  इन सब के साथ रिश्ते या तो नहीं निभते या कटुता पूर्ण होते हैं  '

अब ये निर्णय  आपको लेना है कि धागों की तरह उलझते,सुलझते हुए जीवन बिताना है या बिना उलझे ,साथ साथ या समानांतर चलना है, हर रिश्ते को सुचारु रूप से निभाने के लिए बस यही एक बात ध्यान में रखनी है. रिश्ते ही हैं जो जीवन में रंग भरते हैं.इन रिश्तों के बिना आप सुख दुःख किस के साथ साझा करेंगे. इसलिए हर किसी के साथ निस्वार्थ प्यार का और  ,विश्वास का रिश्ता बना कर रखें और जीवन का आनंद उठाएं.